संस्मरण >> यह हमारा समय यह हमारा समयनंद चतुर्वेदी
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पुस्तक में कई विषयों पर लिखे आलेख हैं जिनमें समय के दबावों, उनको समता और स्वतंत्रता के वृहत्तर उद्देश्यों में बदलने वाले आन्दोलनों की चर्चा है।
इधर हिन्दी का गद्यलेखन समृद्ध और सामाजिक जड़ता तथा रूढ़ियों पर अधिक उग्रता से प्रहार करने के लिए प्रतिबद्ध हुआ नज़र आता है। आज़ादी के लिए संघर्ष करते राष्ट्र-नायकों ने ‘समता और स्वतंत्रता’ के जिन दो महान् लक्ष्यों को पाने का संकल्प किया उन्हें धूमिल न होने का उत्साह हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य का केंद्र्र है। मैंने इस पुस्तक में संकलित आलेखों में ‘समता और स्वतंत्रता’ के लिए अपनी प्रतिबद्धता को ‘पुनरावृत्ति’ की सीमा तक अभिव्यक्त किया है। इस संकलन में उन्हीं सब संदर्भों और परंपराओं को खँगाला गया है जो समता के विचारों और पक्षों को मज़बूत करती हैं। ‘धर्म’ के उसी पक्ष को बार-बार रेखांकित किया है जो धर्म के स्थूल, बाहरी कर्मकांड को महत्त्वहीन मानता है लेकिन जो संवेदना के उन सब चमकदार पक्षों को शक्ति देता है जो सार्वजनिक जीवन को गरिमामय बनाते हैं। पुस्तक में अर्थ और बाज़ार केन्द्रित व्यवस्था के कारण हुई बरबादियों का बार-बार जिक्ऱ हुआ है। पुस्तक में कई विषयों पर लिखे आलेख हैं जिनमें समय के दबावों, उनको समता और स्वतंत्रता के वृहत्तर उद्देश्यों में बदलने वाले आन्दोलनों की चर्चा है। ‘समता’ ही केंद्र्रीय चिन्ता है जिसे अवरुद्ध करने के लिए विश्व की नयी पूंजीवादी शक्तियां अपने सांस्कृतिक एजेन्डा के साथ जुड़ी हुई है। ये आलेख किसी ‘तत्त्ववाद’ की भूमिका नहीं है। ये उन चिन्ताओं की अभिव्यक्ति और साधारणीकरण है जो भारत के जन-जीवन से जुड़ी और भविष्य के विकास की संभावनायें हैं। भारत की समृद्धि ‘समता और स्वतंत्रता’ की परंपराओं से जुड़ी है; यह बताना इस पुस्तक का प्रयोजन है। आलेख ‘निराशा का कर्त्तव्य’ डॉ. राममनोहर लोहिया का है। मैंने उसका प्रस्तुतिकरण किया है।
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